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17 November 2007

हलचल

अन्दर है एक खदबदाहट, वैसी ही खदबदाहट जैसी चूल्हे पर चढ़े भात के बरतन में होती है……किसलिए है यह खबदहाट मालूम नही……ऐसे लगता है जैसे कहीं कुछ छूट सा गया हो…कहीं कुछ टूट सा गया हो…पल-पल सरकता हुआ सा महसूस होता है लेकिन फ़िर भी समय जैसे बीतता नही और फ़िर भी दिन कैसे बीत जाता है मालूम ही नही चलता……सुबह का सूरज देखे कई दिन हो गए और चांद निकलते-चढ़ते हर रोज देखता हूं……… देखता हूं स्याह अंधेरा कैसे धीरे-धीरे कायम होता है और फ़िर चांदनी उसे भगाने की कोशिश करती है लेकिन वह अंधेरा भी अपनी कब्जाहट पूरे तौर से छोड़ने को राजी नही होता………उलझन में रहता हूं………………… सुलझाने की कोशिश में और भी उलझता हुआ सा…………अपने में खोया सा कलम पकड़ता हूं पर समझ में नही आता क्या लिखूं………………दिमाग में ख्यालात उभरते है तो इतने कि दिन का चैन और रात की नींद हराम हो जाती है पर लिखने बैठूं तो सोचता हूं कि आखिर क्या लिखूं………जमाने को लिखूं या अपने को लिखूं और लिखूं भी तो क्या लिखूं……पानी में झांकती-उभरती परछाईयों पर लिखूं या न लिखूं…………आंखों मे तैरते पानी और दिमाग में चलते इन विचारों को क्या कहूं ……सड़क पर चलते हुए सुनते शोर के बीच सुनाई देते उस अनजाने शोर को कैसे सुनूं जबकि मुझे तो किसी की पुकार सुनाई देती भी नही……चढ़ती ठण्ड में शाम की यह हवा और सड़क पर दिखती-उड़ती जुल्फ़ें……जुल्फ़ों पर अटकती नज़रें… और फ़िर उतार-चढ़ाव पर भटकती नज़रें……और बढ़ जाना दिल की धड़कनों का……दिल की धड़कने तो ज़िंदगी की ज़मीनी हकीकत याद आते ही फ़िर एक बार डूबने सी लगती है………डूबना-उतराना मन का जारी ही रहता है और उधर चूल्हे पर धीमी आंच में चढ़े भात के बरतन में खदबदाहट चलती ही रहती है........

27 टिप्पणी:

anuradha srivastav said...

संजीत अन्यमनस्कता का सही चित्रण। न चाहते हुए भी बेबात उदासी ........ कुछ पंक्तियाँ सीधे दिल को छू लेती हैं-……पानी में झांकती-उभरती परछाईयों पर लिखूं या न लिखूं…………आंखों मे तैरते पानी और दिमाग में चलते इन विचारों को क्या कहूं …। तुमने अपने अकेले की नहीं कई लोगों की मनःस्थिति को शब्दों में उतारा है।

मीनाक्षी said...

अनुराधा जी ने सच कहा कि आप अकेले नहीं , कई लोगों की ऐसी ही मन:स्थिति को आपने शब्दों का जामा पहना दिया.
आपकी उदासी दिल की गहराइयों को छूते हुए अंतर में उतर गई.

रंजू भाटिया said...

बहुत सुंदर लफ्जों में उतारा है आपने इन भावों को
सही कहा यह विचार अक्सर सबके दिल में यूं बुदबुदाते रहते हैं
आपके लफ्जों में इन्हे पढ़ना अच्छा लगा !!

Ashish Maharishi said...

sanjit bhai kya huwa??

Anonymous said...

bhai shab kuch gadbad hai.doctor ko dikhaye.

ALOK PURANIK said...

जियो बेटे, मोगंबो खुश हुआ।
अमां अब तुम आवारापन के पोस्ट ग्रेजुएट हुए।
बेहतरीन लिखा है। दिल की बात शब्दों में ढालना बहुत मुश्किल काम होता है। पर जब शब्द इत्ते पारदर्शी हो जायें कि लेखक का दिल झांकने लगे, तो समझो कि लेखन सार्थक हुआ।

पर्यानाद said...

कुछ सूझ नहीं रहा क्‍या कहूं....सब की कथा!! सबके सामने क्‍यों कह दिया यार ...

Shiv said...

ऐसी स्थिति आती रहती है...लेकिन बहुत ही बढ़िया चित्रण किया है, संजीत....बहुत बढ़िया.

ghughutibasuti said...

बहुत सुन्दर भाव बहुत सुन्दर भाषा ।
घुघूती बासूती

Gyan Dutt Pandey said...

चेतना के स्तर पर बिल्कुल इमानदार बात और बेबाक लिखा। पर जैसी मस्त टिप्पणी करते वैसे ही लिखते रहो। ज्यादा सोचना कष्टदायक होता है!

Pratyaksha said...

कुछ पक रहा है । पकने दें ।

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा said...

संजीत जी, भाव बहुत सुंदर है, लेकिन अपने दिल की बात को इतनी साफगोई से कहने के लिए हिम्मत की ज़रूरत होती है.

काकेश said...

खूबसूरत शब्द व जजबात.

Pankaj Oudhia said...

ज्ञान जी की मानसिक हलचल के बाद अब एक और हलचल। बडा ही संक्रामक रोग है यह हलचल का। दूर ही रहो इससे। :)

Anita kumar said...

आप की उदासी दिल की गहराइयों में उतर गयी है।बहुत अच्छा है कि आप ने दिल खोलने का निर्णय किया। कई बार दूसरों से बात करने से राहें निकल आती हैं, न भी निकलें तो दिल तो हल्का हो ही जाता है। भगवान करे आप की ये उदासी के कारण जल्दी मिट जायें।

36solutions said...

Dil Ki Bat Juban Se Hokar Kagaj me utari To Kavita.
Good.

Sanjeet Tripathi said...

आभार आप सभी का, न केवल टिप्पणियों के लिए बल्कि उनमें छिपी भावनाओं के लिए भी!

यह सिर्फ़ किसी एक दिन की उदासी नही है यह मेरे दिलो-दिमाग का ब्यौरा है,सालों का हमेशा का, यूं ही उधेड़बुन रोजाना चलती ही रहती है!!
और जैसा कि नीलिमा सुखीजा अरोरा जी ने कहा साफ़गोई के लिए हिम्मत ज़रुरी है, तो बस अपने मन के इन भावों को शब्दों में बांधने का यह पहला प्रयोग या प्रयास था!

आलोक पुराणिक जी, आप जैसे वरिष्ठो के साथ का ही असर है शायद यह कि मैं ऐसे पारदर्शी शब्द लिख पाया! कोशिश यही है कि मेरे शब्द ही मेरी पहचान बनें!

Sanjeet Tripathi said...

ई मेल पर अजित वडनेरकर जी ने कहा:-


बेचैनी और अकुलाहट कुछ कर न पाने की स्थिति.....
सभी भावों में खूब रंग भरे हैं आपने ।
ब्लागस्पाट नहीं दिखता , सो अब फीड सब्स्क्राइब कर ली है।

said...

नमस्कार संजीत जी ,
अब आपकी और क्या तारीफ की जाए ऊपर पहले ही सब इतना कुछ कह चुके हैं !
बाकी आपके बालों के गिरने का कारण ज्ञात करना कोई बड़ी बात नहीं , जैसा कि ज्ञानदत्त जी ने ऊपर अपनी टिप्पणी है , "ज्यादा सोचना कष्टदायक होता है!" :)

अनूप शुक्ल said...

बड़ा दर्द है भाई। एक कविता झेला देते हैं:-
अजब सी छटपटाहट,घुटन,कसकन,
है असह पीड़ा,
समझ लो साधना की अवधि पूरी है
अरे घबरा न मन
चुपचाप सहता जा
सृजन में दर्द का होना जरूरी है।
-कन्हैयालाल नंदन

Batangad said...

बढ़ाए चलिए पूरी कहानी बनेगी। खदबदाहट जारी रखिए

Tarun said...

हमें पहुँचने में देर हो गयी आशा है अब तक पक गया होगा ;)।

संजीत, भावों को बहुत अच्छी तरह शब्द का जामा पहनाया है, बहुत कुछ कहा और बहुत कुछ अनकहा छोड़ भी दिया। बहुत खूब।

Maulik's Blog said...

mera fav. song yaad aa gaya..aapka solution bhi ho sakta hai..


silli silli tapti raaton mein
jalton hoon mein barsaton mein
dooba dooba har pal yaadon mein
dil kya kare
apney mein hi khoya rehta hoon
kehna hai kuch kuch kehta hoon
pain ajab sa sehta hoon dil kya kare
ho... aankhon aankhon mein
ho... baaton baton mein
ho... le gaya koi
ho... de gaya koi
salaam-e-ishq ishq ishq salaam-e-ishq

din bhar kuch miss karta hoon
jaane kaise khwaahish karta hoon
bheed mein tanha rehta hoon
dil kya kare
bhool gaya main din saal mahina
january mein bhi aaye pasina
aata hai aaraam kahin na dil kya kare
ho...aankhon aankhon mein
ho... baaton baton mein
ho... le gaya koi hoooo
ho... de gaya koi
salaam-e-ishq ishq ishq salaam-e-ishq

ho ..main jo baithoon toh baitha rahoon
der tak chal padoon toh mein chalta rahoon door tak
ho... chaayi bekaraari udd gaye totey
hanss deta hoon rotey rotey
memory mein koi jaagtey sotey
dil kya kare
ho... aankhon aankhon mein
ho... baaton baton mein hooo
ho... le gaya koi
ho... de gaya koi
salaam-e- ishq ishq ishq salaam-e-ishq

hoo...raaastey bhool jata hoon mein
kyon bhalla
bewajaah gungunaata hoon mein
kyon bhalla
nikloon mein phati jeans phenke
shirt ke na hosh button ke
bajjte hain sab sur dhadkan ke dil kya kare
ho... aankhon aankhon mein
ho... baaton baton mein
ho... le gaya koi
h... de gaya koi
salaam-e- ishq ishq ishq salaam-e-ishq
ho... aankhon aankhon mein hooo
ho... baaton baton mein
ho... le gaya koi
h... de gaya koi
salaam-e-ishq...

Unknown said...

पहली बार आपको ऐसा लिखते देखा है....सचमुच कुछ पक रहा है।

Anonymous said...

आवारा जी ,कहा है आप आज कल ,हमारे ब्लॉग पर दिखायी नही दे रहे है ....आपने तो पुरी रेल गाथा लिख डाली ....जरूर ज्ञान जी से कोचिंग की है....अच्छा अब चलते है ...जय राम जी की

Unknown said...

sanjeet aapki vilakshan bhasha se mujhe kabhi pant ke sambandh main nirala ki kahi tippani yaad aati hai ki saraswati ne swayam unki aradhna se prasnna hokar unhe kavitva ka var diya hai

Unknown said...

sanjeet aapki vilakshan bhasha se mujhe kabhi pant ke sambandh main nirala ki kahi tippani yaad aati hai ki saraswati ne swayam unki aradhna se prasnna hokar unhe kavitva ka var diya hai

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