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28 November 2007

एक गांधीवादी से मुलाकात

कल शाम किसी सिलसिले में हमारा जाना हुआ स्वतंत्रता सेनानी, गांधीवादी चिंतक,रायपुर के पूर्व सांसद और लेखक श्री केयूर भूषण जी के यहां। केयूर भूषण जी के बारे मे अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हम उनके यहां से वापस लौट रहे थे और उनके द्वारा भेंट की गई उनकी किताब "छत्तीसगढ़ के नारी रत्न" हमारे हाथ मे थी, जिसमें लेखक के रुप में उनका नाम देखकर हमारे एक हम-उम्र मित्र ने कहा " ऐसी सादगी भी किस काम की कि आदमी 19 साल तक(1980 से 1999) रायपुर का सांसद रहा हो और आज भी सायकल में ही घूमता हो"।
तो यह है केयूर भूषण जी का व्यक्तित्व। बचपन में जब से होश संभाला उन्हें अपने क्षेत्र के सांसद के रुप में देखा पर जब भी वो हमारे घर आते हमारे पिता के चरण पहले छूते क्योंकि हमारे पिता और वह न केवल ममेरे-फ़ुफ़ेरे भाई थे बल्कि दोनो ही आजादी के दीवाने थे। कल केयूर जी बता रहे थे कि वह, स्व मोतीलाल त्रिपाठी जी और स्व रामसहाय तिवारी जी तीनों रिश्ते मे भाई थे और तीनों करीब-करीब आसपास ही स्वतंत्रता आंदोलन में उतरे। पहले मोतीलाल त्रिपाठी जी 1939 में फ़िर 1942 में केयूर जी और रामसहाय जी। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान तीनो कई बार जेल गए लेकिन जेल से रामसहाय जी कम्युनिस्ट बनकर लौटे।

हम अपनी बात करें तो इन रामसहाय जी की बहुत धुंधली सी याद है दिमाग में, हम बहुत छोटे हुआ करते थे तब जब ये हमें अपनी गोद में उठाकर लाड़ दिखाया करते थे और हमें बड़ा अजीब सा लगता था क्योंकि उनके सारे शरीर पर गांठे थी। पता नही कौन सी बीमारी के कारण थी यह। जब हमारी दादी गुज़री तो अस्थि विसर्जन के लिए पिता स्व श्री मोतीलाल जी के साथ स्व रामसहाय जी और हम बहुत छोटे होने के बाद भी गए थे। याद आता है कि संगम में गंदगी देखकर कम्युनिस्ट रामसहाय जी ने वहां नहाने से ही इनकार कर दिया था और कहा था कि ऐसी गंदी जगह पर पाप धोने से तो अच्छा है कि मै पापी ही रहूं और आखिरकार वह नाव से नीचे उतरे ही नही थे!

खैर! हम बात कर रहे थे केयूर भूषण जी की, कल शाम जब हम उनसे मिलने गए तो हमारे साथ केंद्र सरकार के विभाग डी ए वी पी के फील्ड एक्जीक्यूटिव ऑफ़िसर श्री शैलेष फाये भी थे!! केयूर जी का स्वास्थ्य पिछले कुछ सालों से नर्म चल रहा है, उमर हो गई है करीब 81 बरस की, और पिछले महीने चाची जी अर्थात उनकी पत्नी श्रीमती सूर्यकुमारी जी की तबियत खराब होने के कारण वह कुछ दिन नर्सिंग होम मे भरती थीं। वहां से छुट्टी मिलने पर चाचा और चाची जी दोनो स्वास्थ लाभ के लिए चले गए थे दिल्ली अपने बड़े बेटे प्रभात मिश्रा के पास जो कि वहां प्रकाशन आदि कार्य से जुड़े हैं। दिल्ली से कल ही दोपहर में लौटे और खबर मिलते ही शाम में हम पहुंच गए क्योंकि आज़ादी एक्स्प्रेस के लिए उन्हे न्यौता देने के लिए फ़ाये जी उनका इंतजार कई दिनों से कर रहे थे।

यह देखकर खुशी हुई कि उनकी नज़र नक्सल मामले में पैनेपन के साथ गड़ी हुई है। इस मामले में उनके विचार
" आज़ादी से पहले रजवाड़ों के समय में आदिवासियों को तत्कालीन राजाओं से बहुत सुविधाएं मिलती थी बदले में वह भी राजाओं के काम आते थे जैसे कि शिकार के समय हांका करने मे मदद, मचान बनाने में मदद और ऐसे ही अन्य मदद बदले में राजा की तरफ़ से वन संपदा उनके हवाले कर दी जाती थी उपभोग करने के लिए। जबकि स्वतंत्रता के बाद जंगल या वन संपदा के स्वामी ठेकेदार व वन अधिकारी हो गए और आदिवासी वनसंपदा का उपयोग करने से वंचित , ऐसे मे आदिवासी कहां जाए, नतीजा यह हुआ कि तीर कमान रखने वाले आदिवासी हाथों में बंदुक आ गई।"

"नक्सलवादी बात तो आदिवासी हितों की ही कर रहे हैं पर बंदूक के साथ कर रहे हैं अगर बंदूक छोड़कर यह बात करें तो अच्छा है।"

नक्सल समस्या से विचलित और आदिवासियों के लिए कुछ करने की आतुरता 81 बरस के केयूर जी में साफ़ दिखती है वे बताते हैं कि " नक्सलवाद के सुलझाव के लिए मैने जेल में बंद नक्सली नेताओं से मिलने के लिए सलवा जुडूम को गांधीवादी आंदोलन बताने वाले शासन-प्रशासन से अनुमति मांगी लेकिन दो महीने लटकाने के बाद उन्होने इंकार कर दिया" (गौरतलब है कि एक तरफ़ शासन-प्रशासन एक गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी को नक्सली नेताओं से मिलने की अनुमति नही देती वहीं दूसरी तरफ़ जेल में बंद नक्सली नेताओं को ऐसे लोगों से मिलने की इज़ाज़त है जो उन तक मोबाईल भी पहुंचा देते हैं। पिछले दिनों जेल में बंद एक नक्सली नेता के पास से मोबाईल बरामद हुआ जिसे वह न जाने जब से उपयोग कर रहे थे, तलाशी हुई मोबाईल बरामद हुआ तो उन्होने फ़टाक से मोबाईल खोला और सिम को निकालकर निगल लिया। अब फोड़ते रहो माथा कि कॉल रिकॉर्ड्स कैसे निकाले जाएं।खैर…)

केयूर जी आगे कहते हैं, " छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद हर क्षेत्र में शोषण बहुत ज्यादा बढ़ गया है, अगर यही हाल रहा तो यहां के निवासी पलायन कर जाएंगे और आदिवासी क्षेत्रों में फ़ॉर्म हाऊस और वनवासी क्षेत्रों में उद्योगों की चिमनियां ही बस दिखाई देंगी।

आदिवासियों के बारे में बात करते हुए केयूर जी ने कहा कि जो लोग सलवा जुडूम के कैंप में है उनके खेतों में खेती कोई और कर रहा है, घरों मे कोई और रह रहे हैं, कल को खेत और घर दूसरों के नाम हो जाएंगे, वे बेचारे कैंपवाले कहां जाएंगे क्या करेंगे।


बातचीत के दौरान केयूर जी से हमने दलितों के मंदिर प्रवेश वाली घटनाओं के बारे में जानना चाहा क्योंकि ऐसी ही एक घटना हमारे बचपन में हुई थी और उसकी यादें हमारे ज़ेहन में ताज़ा ही है। तो उन्होने बताया कि वे दलितों-हरिजनों के लिए काम करते रहे हैं। एक बार नाथद्वारा मंदिर, राजस्थान के ट्रस्टियों ने इन्हे आमंत्रित किया मंदिर में इस मौके पर वहां उपस्थित तथाकथित सवर्णों ने इन्हें दलित-हरिजन समझ कर मंदिर में जाने पर पिटाई कर दी, खूब हो हल्ला हुआ पुलिस आई गोली चली। ऐसे ही बिलासपुर के पांडतराई गांव में भी हुआ वहां के मंदिर में दलितों-हरिजनों को प्रवेश नही करने दिया जाता था इस पर केयूर जी वहां पहुंचे, (यह घटना 1984 के आसपास की है) खूब लड़ाई झगड़ा हो गया, पुलिस आई गोली चल गई। अंतत: मामला कोर्ट में गया।

शाम में हम यह सोचकर उनके घर गए थे कि जल्दी ही लौट आएंगे लेकिन बातें जो शुरु हुई तो फ़िर करीब दो घंटे के बाद यह एहसास हुआ कि हमें वापस लौटना है। और वापस लौटते हुए अफ़सोस हो रहा था कि लौटना पड़ रहा है जबकि बातें अभी भी हजार बाकी हैं। 81 बरस की उमर वाले यह गांधीवादी थके से नही लगे, बल्कि उन्होने कहा कि अभी उन्हें बहुत कुछ करना है उन्होने गिना भी दिए कि क्या क्या करने का वह सोचे बैठे हैं, कई किताबें हैं जो पूरी कर प्रकाशित करवानी है इसके अलावा नक्सल आंदोलन पर कुछ करना है साथ ही और भी बहुत कुछ!!

क्या हम अपने इन बुजुर्गों से यह सब सीख पाएंगे।

हम उनके आभारी हैं क्योंकि उन्होनें अपनी किताब "छत्तीसगढ़ के नारी रत्न" के मुख्य अंश ब्लॉग पर डालने की मौखिक अनुमति हमें दे दी है।




14 टिप्पणी:

ALOK PURANIK said...

भई कमाल का व्यक्त्तित्व है। धन्यवाद परिचय कराने के लिए।

Ashwini Kesharwani said...

sanju baba, achchhi post ke liye badhai.
ashwini kesharwani

बालकिशन said...

प्रसंग काफ़ी प्रेरक है. श्री केयूर भूषण जी जैसे व्यक्तित्व के स्वामी आज के समय मी मिलने मुश्किल है. आपसे उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ के नारी रत्न से भी परिचय करवाएंगे.

रंजू भाटिया said...

अदभुत वयक्तितव !!आपकी कलम ने हमे भी साथ साथ उनसे मिला दिया "छत्तीसगढ़ के नारी रत्न" के मुख्य अंश का इंतज़ार रहेगा
शुक्रिया !!

Gyan Dutt Pandey said...

केयूर भूषण जी के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा। मैं यह नहीं कहूंगा कि ऐसे व्यक्ति अब नही पाये जाते - पर उनके बारे में कम सुनने में आता है।
काश सादगी में कभी कोई हमें भी इस प्रकार की प्रशंसा - न्यून मात्रा में ही सही, दे भविष्य में!
लेख के लिये पुन: धन्यवाद।

Srijan Shilpi said...

शुक्रिया, केयूर भूषण जी जैसे जनसेवी, प्रबुद्ध राजनीतिक व्यक्तित्व से परिचित करवाने के लिए।

Anonymous said...

Sach kaha apne sanjit ji
kya hum in bujurgo k jivan se kuch sikh payenge
aur nahi to sadgi aur saralta he inki tarah utar sake to
ek bat hogi hum jaise yuva varg k liye...

Sumit said...

Hi Sanjit,

mujhe bhi yaad ahi jab keyur bhushan sansas hua karte the tab bhi sunder nagar me unhe cycle me hi ghumta dekha, kya unki sadagi ki gunj sansad ke vartaman sadsyon ke liy kabhi anuakrniya udaharn ban sakati hai????????

मीनाक्षी said...

श्री केयूर जी के सादे महान व्यक्तित्त्व के बारे में जानकर आशा की किरण जागती है कि अब भी उनको आदर्श मानकर कुछ तो आगे आएँगे.
अब छत्तीसगढ़ के नारी रत्न के विषय में जानने की उत्सुकता है.

काकेश said...

धन्यवाद परिचय कराने के लिए।

अजित वडनेरकर said...

बहुत अच्छी जानकारी दी संजीत । इस तरह केयूर भूषणजी के बारे में छात्रजीवन से सुनता रहा हूं। तब तो छत्तीसगढ़ भी मध्मप्रदेश में ही समाहित था। केयूरजी जैसे लोग आज विरल हैं अलबत्ता सादगी, सहजता और संस्कारी लोगों की आज भी कमी नहीं है, पर ऐसे लोगों से कुछ सीखने - पाने की दृष्टि लोगों में कम होती जा रही है।
केयूर जी के आत्मीय होने के नाते आप भी यकीनन लाभान्वित तो हुए ही होंगे।

anuradha srivastav said...

महान विभूतियों से इसी तरह मिलवाते रहिये

RAVINDER said...

AACHA HAI

Unknown said...

Today no media,no paper is interested to show or write about good people. may be we are in peace because of few people like Keyurji around us still....

K.R.NAIR
RAIPUR.

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