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11 December 2007

ख़रामां ख़रामां

अहमदाबाद निवासी हमारी एक मित्र वैशाली शाह पिछले दिनों हमें याहू चैट पर मिली। जब वह मिली तो हमने उनसे उनका हाल चाल पूछा। जवाब में टुकड़ों-टुकड़ों में उन्होंने जो कहा, उसे एक साथ पढ़ने से लगा कि यह तो "कविता जैसा कुछ" बन गया है। पूछने पर पता चला कि स्कूल-कॉलेज के दिनों में मोहतरमा लिखने का शौक फ़रमाती थी पर पिछले कई सालों से बंद है। उनकी इज़ाज़त से उनकी लिखीं पंक्तियां, हम यहां डाल रहे हैं।








चल रही है ज़िंदगी

धीरे-धीरे।
कभी उपर कभी नीचे
थोड़ी आगे थोड़ी पीछे
खुद को सुलझाती हमको उलझाती
कभी बिगड़ती तो कभी संभलती,
हैरान हूं थोड़ी ज़िंदगी से।
समझने की नाकाम कोशिश सी
जारी है
जिंदगी समझ में आती नही मुझे
मैं उसे और उलझाती जाती हूं।


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मन को इतनी छूट न दो
कि वह कहते-कहते

तुम्हारी सुनना ही बंद कर दे।

अगर उसकी सुनने लगो इतनी

तो यह न हो

कि बोलना ही वह तुम्हारा बंद कर दे।



14 टिप्पणी:

बालकिशन said...

अच्छी है.
पढ़कर सच ही अहसास हुआ कि बात की बात मे कविता बन गई.
'खुद को सुलझाती हमको उलझाती
कभी बिगड़ती तो कभी संभलती,"

बहुत खूब. एकदम सही.

ALOK PURANIK said...

भौत बढि़या है जी।

mamta said...

जिंदगी की व्याख्या बडे ही सरल शब्दों मे की है।

Unknown said...

बहुत खूब वैशाली जी... वैसे अब आप संजीत जी की मित्र हैं तो इतना तो पक्का है की लिखने का शौक आपको जरूर होना कहिये. कविता अच्छी है और एक अलग सी मस्ती भरी हुई है..

संजीत जी, कृपया ये सन्देश वैशाली जी को "पास" कर दीजियेगा...

मीनाक्षी said...

मन को इतनी छूट न दो
कि वह कहते-कहते
तुम्हारी सुनना ही बंद कर दे।
-- बहुत गहरी बात कह दी... शुभकामनाएँ

ghughutibasuti said...

बात बात में बहुत ही सुन्दर भावों वाली बहुत सुन्दर कविता बनी है ।
घुघूती बासूती

कंचन सिंह चौहान said...

मन को इतनी छूट न दो
कि वह कहते-कहते
तुम्हारी सुनना ही बंद कर दे।
सही बात

राकेश खंडेलवाल said...

अच्छी लगी ज़िन्दगी को समझने की ईमानदार कोशिश

Gyan Dutt Pandey said...

सही है - लगाम मन पर भी कसें और बोलने पर भी। अति सर्वत्र वर्जयेत!

पारुल "पुखराज" said...

antim panktiyaan bahut achhhi lagin,vaisey mujhey lagaa ki ye hamari vaali vaishaali hai..magar pic to kuch aur kah raha hai.

36solutions said...

बहुत खूब संजीत भाई, अहमदाबाद से वैशाली जी का पैगाम 'कविता जैसा कुछ' नहीं कविता ही है ।
बधाई हो वैशाली जी भावो को बेहतर उकेरा है शव्‍दो में ।

Batangad said...

संजीतजी
आपकी अहमदाबाद की मित्र को सलाह दीजिए। ब्लॉग बनाएं उस पर लिखना शुरू कर दें।

अजित वडनेरकर said...

कविता ही है और क्या.....

Shastri JC Philip said...

आपकी जाल-मित्र भाग्यशाली हैं कि आप जैसा काव्य का पारखी मित्र मिला

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